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शुक्रवार, 8 जून 2018

Dr. Pranab Mukherjee chief guest at RSS Event Nagpur प्रणव दा संघ के कार्यक्रम में मोहन भागवत के साथ एक मंच पर।

आज का दिन भारतीय इतिहास में एक अत्यंत ही अद्भुत, अविस्मरणीय, अकल्पनीय एवं प्रेरणादाई अध्याय के रूप में अंकित होगा। यह मौका था जब भारत के पूर्व राष्ट्रपति  एवं वरिष्ठ कांग्रेसी नेता डॉ प्रणव मुखर्जी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख डॉ मोहन भागवत जी के निमंत्रण को स्वीकार करते हुए संघ के एक कार्यक्रम में सम्मिलित होने नागपुर पहुंचे, और वहां दो परस्पर विरोधी विचारधारा के दिग्गज एक मंच पर अपने विचारों को प्रकट किया। यह घटना अपने आप में ऐतिहासिक रहा और उन लोगों पर करारा तमाचा जड़ने जैसा था जो संघ के विचारों और आदर्शों को पृथककारी एवं विभाजनकारी बताते हुए असहिष्णु होने का आरोप लगाया करते थे। यह सहिष्णुता का श्रेष्ठतम उदाहरण है जब संघ ने अपने से भिन्न विचारधारा को सम्मान एवं आदर देते हुए उनके  विचारों की अभिव्यक्ति प्रदान कर, उनकी अच्छी बातों को समझने एवं सीख लेने की भावना से आमंत्रित किया।
आज सबसे ज्यादा असहिष्णु वही नजर आ रहे हैं जो सहिष्णुता का वकालत करते थकते नहीं थे। आज  अवार्ड वापसी गैंग के पाखंड का पर्दाफाश हो चुका है। आज इन्हें पूर्व राष्ट्रपति डॉ प्रणव मुखर्जी जी के विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला करते हुए साफ साफ देखा जा सकता है।

Pic courtesy : ANI



   > इसके पूर्व  प्रणव दा हेडगेवार जी को श्रद्धासुमन अर्पित करने के बाद प्रणब दा ने वहां रखी विजिटर्स बुक में अपना मत रखा। उन्होंने लिखा- मैं आज यहां भारत माता के एक महान सपूत के प्रति आदर व्यक्त करने और उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करने आया हूं। 

डॉ प्रणव मुखर्जी के भाषण के कुछ अंश :

           हमारे संविधान में राष्ट्रवाद की भावना बहती है। यहां कोई एक भाषा या एक धर्म नहीं है। सहनशीलता ही हमारा आधार है। और भारतीय ही हमारी पहचान है। विविधता में संवाद की बहुत गुंजाइश है। इससे ही देश को ताकत मिलती है। हमारे देश में 122 भाषा और 1600 बोलियां हैं। लोकतंत्र की प्रक्रिया में सबकी भागीदारी जरूरी है।
             डॉ मुखर्जी ने कहा- बाहरी आक्रांताओं ने देश पर आक्रमण और शासन किया। ईस्ट इंडिया कंपनियां व्यापार करने आई लेकिन बाद में यहां अंग्रेजों का शासन हो गया। लेकिन हमारा राष्ट्रवाद जीवित रहा। दुनिया का सबसे पहला राज्य है भारत। हम अलग-अलग सभ्यताओं को इस देश की संस्कृति में शामिल करते रहे। भारत एक स्वतंत्र समाज रहा है। 1800 साल तक हम दुनिया के लिए ज्ञान का केंद्र हैं। 
        राष्ट्रवादी किसी भी देश की पहचान होती है। हम विश्व को वसुदैव कुटुम्बकम के रूप में देखते हैं। यही हमारी राष्ट्रीयता है। ह्वेनसांग और फाह्यान ने हिंदुओं की बात की है। हम कई सदियों से ऐसा ही सोचते हैं। चाणक्य ने अर्थशास्त्र लिखा। अगर कोई भेदभाव है तो वो सतह पर होना चाहिए। हमारी संस्कृति एक ही रही है। इतिहासकार कहते हैं कि विविधता में एकता ही देश की ताकत है। मैं राष्ट्र, राष्ट्रवाद और राष्ट्रीयता की बात करने आया हूं। तीनों को अलग-अलग रूप में देखना मुश्किल है। राष्ट्रीयता को असहिष्णुता के तौर पर परिभाषित करना हमारी पहचान धुंधली करता है। यही भारत की ताकत भी है।


                                  

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