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मंगलवार, 3 अप्रैल 2018

अमर्यादित एवं अनैतिक पत्रकारिता के घातक प्रभाव।

 भारत बंद ,sc st protection act में संशोधन के विरोध में दलित समुदाय का Bharat band, हिंसा

अभी मैं एक न्यूज चैनल के एक कार्यक्रम, जो दलितों के कानून में सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के खिलाफ तथाकथित दलित समुदाय द्वारा किए गए आंदोलन में हुए उपद्रव और हिंसा पर आधारित रिपोर्ट था। आप हैरान हो जाएंगे जब जानेंगे कि ऐसे संवेदनशील परिस्थिति में मिडिया जैसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता पत्रकार इतना संवेदनहीन और अज्ञानी कैसे हो सकता है।  वह भी आज के इस दौर में जहां स्टुडियो से प्रसारित होने वाले एक एक शब्द   देश-दुनिया में तत्काल प्रभाव से असर डाल सकता है, यहां से की गई कोई भी गलती पूरे देश में नफरत और असुरक्षा का वातावरण बना सकता है,ऐस ऐ में जिम्मेवार भी बड़ी है और यहां एक भी गलती की गुंजाइश नहीं होनी चाहिए। इस ब्लॉग में मै एक रिपोर्ट में Voice over देने वाले रिपोर्टर दंगाइयों से ज्यादा खतरनाक साबित होता नजर आ रहा है। अभी सरकार में इसे सौ गलतियां दिख रहा है, कोर्ट के फैसले के खिलाफ दस दिन बाद सरकार ने विरोध दर्ज कराया, उसमें भी चार पांच दिन छुट्टी के थे। अगर पुलिस कठोर निर्णय ले लिया होता तब जान माल की क्षति बढ़ जाती और स्थिति अनियंत्रित होने की पूरी संभावना बनी रहती। पर इस रिपोर्टर को तो दूसरे लोगों के लासों पर टि.आर.पी. का नंगा नाच चाहिए।  इसका तो कुछ बिगड़ना नहीं है,पर नरभक्षी विचारधारा के पोषकों सारे नैतिकता का तिलांजलि दे रखे हो? अनपढ़ ,संवेदनहीन , अमानवीय लोगों का पत्रकारिता के क्षेत्र में होना अत्यंत घातक सिद्ध हो सकता है।
इस आग को हवा देने वाले विपक्ष के लिए धृतराष्ट्र बना बैठा है,उल्टे सरकार को दोषी ठहराने में नीचता की सारी हदें लांघ चुका। जब स्थिति खराब हो चुकी थी तब सरकार ने पुलिस को संयमित रहकर कार्रवाई करने का आदेश दिया,यह तो सराहनीय प्रयास है। अगर उग्र आंदोलन पर बल प्रयोग कर दबाने का कोशिश किया जाता तब इसका परिणाम कहीं और विध्वंसक हो सकता था, इसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता कि शक्ति प्रयोग का परिणाम कितना घातक और विनाशकारी होता!
सरकार का विरोध कर ऐसे पतित लोग बेशर्मी की पराकाष्ठा कर दिया है। शांति स्थापित करने के लिए किए गए प्रयासों को बल प्रदान और समर्थन देने की आवश्यकता है।किसी भी जिम्मेवार सामाजिक संगठन या संस्था को शांति प्रदान करने वाले पक्ष को उजागर करने की कोशिश करनी चाहिए,पर दुर्भाग्यवश ये सपोले आग में घी डालने का प्रयास करते दिखाई दे रहे हैं।
मिडिया का अपने सामर्थ्य का सकारात्मक उपयोग कर सकारात्मक परिणाम प्रदान करने में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का उत्तरदायित्व है,पर दुर्भाग्यवश दूसरे लोगों के जलते अस्तित्व पर तमाशा देखने वाले जब अपने उत्तरदायित्व को भूलकर अपने आकाओं के गुलामी में तलवे चाटते नजर आए तब परिणाम बहुत ही विनाशकारी होने की संभावना होगी।

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